प्राचीन काल में मिट्टी को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता था – उर्वर, जो उपजाऊ थी, और ऊसर, जो अनुर्वर थी। 16वीं शताब्दी में मिट्टी का वर्गीकरण उनकी प्राकृतिक विशेषताओं और बाहरी लक्षणों के आधार पर किया जाता था।
जैसे- गठन, रंग, भूमि का ढाल और मिट्टी में नमी की मात्रा। मिट्टी के गठन के आधार पर मुख्य वर्ग थे- बलुई, मृण्मय, पांशु और दुमट इत्यादि। रंग के आधार पर वे लाल, पीली, काली इत्यादि थे।
भारत की मिट्टियाँ : प्रकार
उत्पत्ति, रंग, संरचना और गुणवत्ता के आधार पर भारत की मिट्टियों को उपरोक्त प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
(i) जलोढ़ मृदाएँ
(ii) काली मृदाएँ
(iii) लाल और पीली मृदाएँ
(iv) लैटेराइट मृदाएँ
(v) शुष्क मृदाएँ
(vi) लवण मृदाएँ
(vii) पीटमय मृदाएँ
(viii) वन मृदाएँ