
भारत के साहित्यिक इतिहास में ऐसे कई महान और सुशिक्षित कवि और लेखक हुए हैं जिन्होंने भारतीय मूल के लोगों को अपनी रचनाओं से आशा और प्रेरणा दी। ऐसे बहुत से कवि हैं जिनकी रचनाएँ आज भी जानी जाती हैं और जिनकी कविताएँ आज भी हमारे दिलों को छू जाती हैं। ऐसे ही थे महान साहित्यकार वासुदेव शरण अग्रवाल।
वह एक प्रसिद्ध निबंधकार थे, जिन्होंने बहुत से ऐतिहासिक ग्रंथों का हिंदी और संस्कृत में अनुवाद किया। आज की इस पोस्ट में हम बात करेंगे वासुदेव शरण अग्रवाल के जन्म, जन्म स्थान, माता का नाम, पिता का नाम, मृत्यु, भाषा, साहित्य आदि के बारे में। यदि आप इस लेख को पूरा पढ़ते हैं, तो आप उनके Vasudev Sharan Agrawal Ka Jivan Parichay के बारे में और जानेंगे:
Vasudev Sharan Agrawal Ka Jivan Parichay
नाम (Full Name) | वासुदेव शरण अग्रवाल |
जन्म तिथि (Birth Date) | 7 अगस्त, 1904 |
जन्म स्थान (Birth Place) | खेड़ा ग्राम, मेरठ जिला (उत्तर प्रदेश) |
मृत्यु तिथि (Death Date) | 27 जुलाई 1967 |
मृत्यु स्थान (Death Place) | वाराणसी |
आयु (Age) | 63 वर्ष (मृत्यु के समय) |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
भाषा (Language) | संस्कृत, हिंदी, प्राकृत, अंग्रेजी |
शिक्षा (Education) | एम. ए. (लखनऊ – 1929), पीएच.डी. (लखनऊ -1941), डी. लिट. (लखनऊ – 1946) |
व्यवसाय (Occupation) | संस्कृत और हिंदी साहित्य, सांस्कृतिक इतिहास, मुद्राशास्त्र, संग्रहालय विज्ञान और कला इतिहास। |
पुरस्कार (Awards) | 1956 में गद्य टीका पद्मावत संजीवनी के लिए हिंदी में साहित्य अकादमी पुरस्कार |
पिता का नाम (Father’s Name) | विष्णु अग्रवाल |
माता का नाम (Mother’s Name) | सीता देवी अग्रवाल |
वासुदेव शरण अग्रवाल जन्म और प्रारंभिक जीवन (Birth and Early Life)
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त, 1904 को मेरठ जिले के खेड़ा गांव में हुआ था। उनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे, जहाँ वे भी बड़े हुए और यही शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता जी का नाम विष्णु अग्रवाल था और माता जी का नाम सीता देवी अग्रवाल था।
1929 में उन्होंने MA करने के बाद उन्होंने 1940 तक अध्यक्ष के रूप में मथुरा पुरातत्व संग्रहालय को चलाया। उसके बाद 1941 में उन्होंने हिंदी साहित्य में PHD की उपाधि प्राप्त की।
फिर 1947 में उन्होंने D.Lit. पूरी की। उसके बाद, वासुदेव शरण मध्य एशियाई एंटिक्विटीज म्यूजियम के अधीक्षक बने। 1951 तक वे भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रभारी रहे। 1951 में उन्हें काशी हिंदू यूनिवर्सिटी कॉलेज में इंडोलॉजी के प्रोफेसर की नौकरी दी गई। 1952 में, उन्होंने राधाकुमुद मुखर्जी के लिए लखनऊ में एक साथ व्याख्यान दिया और शरद अग्रवाल को भी आने का आमंत्रित दिया।
वासुदेव शरण अग्रवाल का साहित्यिक योगदान (Literary Contribution)
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल भारतीय संस्कृति, पुरातत्व और पुराने इतिहास के एक महान विद्वान और शोधकर्ता थे। वे वास्तव में वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से भारतीय संस्कृति को प्रकाश में लाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उच्च कोटि के शोध पत्र लिखे। उनके अधिकांश निबंध बहुत पहले से भारतीय इतिहास और संस्कृति के बारे में हैं।
अपने निबंधों में, उन्होंने अतीत, वेदों और पौराणिक कथाओं से धर्मों का परिचय दिया। निबंध के अतिरिक्त उन्होंने अनेक पालि, प्राकृत और संस्कृत ग्रंथों का संपादन और शोध किया। लोग सोचते हैं कि जॉयस की “पद्मावत” पर उनकी टीका सबसे अच्छी है।
उन्होंने बाणभट्ट के “हर्षचरित” का सांस्कृतिक अध्ययन किया और दिखाया कि श्री कृष्ण, वाल्मीकि, मनु और अतीत के अन्य महापुरुष आधुनिक दृष्टिकोण से कितने चतुर थे। वे अद्वितीय, विचारशील और विद्वान होने के कारण हिन्दी साहित्य के इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेंगे।
वासुदेव शरण अग्रवाल की भाषा शैली (Language)
वासुदेव शरण अग्रवाल जी एक शुद्ध और परिष्कृत खड़ी भाषा में बोलते हैं जो उपयोगी, स्पष्ट, समझने योग्य, सरल और सार्वभौमिक था। इन्होंने अपने ही देश के बहुत से शब्दों का अपनी भाषा में प्रयोग किया है। इस कारण इनकी भाषा सरल और बोधगम्य हो गई थी जिस वजह से भाषा को समझना आसान हो गया था और उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं के शब्द अक्सर उनकी भाषा में उपयोग किए जाते थे। उन्होंने कई अलग-अलग लेखन शैलियों का प्रयोग किया है, जैसे खोजपूर्ण, व्याख्यात्मक, वर्णनात्मक, उद्धरण, आदि। उनकी दोनों शैलियाँ एक ही उद्धरण, व्याख्या और भावनात्मक स्वर का उपयोग करती हैं जो संस्कृत ग्रन्थ में भी पढ़े गए हैं।
वासुदेव शरण अग्रवाल का मृत्यु (Death)
भारतीय संस्कृत और पुरातत्व के महान विद्वान और लेखक Dr Vasudev Sharan Agrawal का निधन 27 जुलाई, 1967 ई. को हुआ। वासुदेव जी ने अपने शेष जीवन में संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में पुस्तकें लिखीं। उनकी भाषा खड़ी बोली थी। उन्हें अध्याय लिखना और निबंधों को अन्य भाषाओं में बदलना पसंद था। उन्होंने अपनी कई प्रसिद्ध कविताएँ संस्कृत भाषा में लिखी हैं। हिन्दी साहित्य के इतिहास में उन्हें मौलिक, विचारशील और चतुर होने के लिए याद किया जाता हैं।
वासुदेव शरण अग्रवाल की कृतियाँ (Creations)
Dr Vasudev Sharan Agrawal ने निबंध, शोध और संपादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया। यहाँ उनके मुख्य कृतियों के बारे में कुछ विवरण दिए गए हैं:
निबन्ध-संग्रह: ‘पृथिवीपुत्र’ , ‘कल्पलता’ , ‘कला और संस्कृति’ , ‘कल्पवृक्ष’ , ‘भारत की एकता’ , ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ , ‘वाग्धारा’ इनके मशहूर निबन्ध-संग्रह हैं।
शोध प्रबन्ध: ‘पाणिनिकालीन भारतवर्ष’।
आलोचना-ग्रन्थ: ‘पद्मावत की संजीवनी व्याख्या’ और ‘हर्षचरित का सांस्कृतिक अध्ययन’।
सम्पादन: पालि, प्राकृत और संस्कृत के एकाधिक ग्रन्थों का।
वासुदेव शरण अग्रवाल के पुरष्कार (Awards)
Dr Vasudev Sharan Agrawal जी भारतीय इतिहास, संस्कृति और कला के साथ-साथ साहित्य के भी बड़े विद्वान थे। वह 1904 से 1967 तक जीवित रहे। उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किया गया। उनकी साहित्य की प्रत्येक रचना पुरस्कार के रूप में है।
FAQs
वासुदेव शरण अग्रवाल भारत के इतिहास, संस्कृति, कला और साहित्य के विद्वान थे। वह हिंदी गद्य के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार के विजेता हैं। भारत को आजादी मिलने के बाद, वह दिल्ली में राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना का एक बड़ा हिस्सा थे।
उनका जन्म 7 अगस्त, 1904 को खेड़ा ग्राम, मेरठ जिला (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
उनके पिता का नाम विष्णु अग्रवाल और उनकी माता का नाम सीता देवी अग्रवाल था।
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल का मृत्यु 27 जुलाई, 1967 ई. को हुआ था।
आखिरी शब्द
यहाँ इस लेख में, हमने Vasudev Sharan Agrawal Ka Jivan Parichay के बारे में बहुत कुछ सीखा है। हम आशा करते हैं कि आपको Dr Vasudev Sharan Agrawal Biography In Hindi पसंद आई होगी और इस लेख की मदद से आपको उनकी जीवनी के बारे में अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा।
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