अलंकार की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण: Alankar Ki Paribhasha aur Uske Bhed
आप सभी ने अपने हिंदी व्याकरण के विषय में अलंकार टॉपिक अवश्य ही पड़ा होगा लेकिन हम अपने स्कूल के दिनों में ऐसे विषयों को ध्यान लगाकर नहीं पड़ते हैं जिस वजह से प्रतियोगी परीक्षाओं में हमें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

अलंकार एक ऐसा विषय है जो कि वर्तमान समय में कई प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछा जाता है इसलिए यहां पर आपको अलंकार की परिभाषा उसके भेद और उदाहरण विस्तार से बताए गए हैं।
अलंकार की परिभाषा
अलंकार का शाब्दिक अर्थ सजावट या फिर आभूषण होता है, यानी कि जब हम काव्य में किसी शब्द या अर्थ में अलंकार का इस्तेमाल करके चमत्कार उत्पन्न करके उसकी सौंदर्यता बढ़ाते हैं।
जिस तरह से एक स्त्री आभूषण पहनने पर अधिक सौंदर्य दिखती है इस तरह से काव्य में अलंकार का इस्तेमाल होने पर उसका सौंदर्य अधिक हो जाता है।
अलंकार के भेद
अलंकार के तीन भेद हैं जो कि आपको निम्न प्रकार से बताए गए हैं।
शब्दालंकार
जब अलंकार शब्दों के इस्तेमाल से इसी तरह का चमत्कार उत्पन्न करके काव्य की शोभा बढ़ाते हैं तो उसे शब्दालंकार कहा जाता है।
जैसे की:- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
शब्दालंकार के भेद
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- श्लेष अलंकार
अर्थालंकार
- जब काव्य में भाषा का इस्तेमाल इस तरह से किया जाए की उसके अर्थ में चमत्कार या समृद्धि उत्पन्न हो तो उसे अर्थालंकार कहते हैं।
जैसे की:- बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बड़ाई पाय। कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाय।
अर्थालंकार के भेद
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- अतिशयोक्ति अलंकार
- अन्योक्ति अलंकार
उभयालंकार
जब हम काव्य में अलंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आधारित होकर चमत्कार उत्पन्न करने की कोशिश करते हैं तो वह उभयालंकार कहलाता है।
उभयालंकार के दो भेद होते हैं-
- संसृष्टि अलंकार
- संकर अलंकार